दौर-ए-कोरोना
कुछ पल का मेहमान है ये वक़्त
आया है, तो गुज़र भी जाएगा
आज खल रही है इस कदर तन्हाई
कल फ़ुर्सत के दो लम्हों को
जी, फ़िर से तरस जाएगा
क्यूँ खटक रहा है सन्नाटा
कल शोर से फ़िर दिल घबराएगा
बेचैन है, जो घर में कैद है
कल घर लौटने का इंतज़ार
इक बार फ़िर बेकरार कर जाएगा
डर रहा है कि अंधेरा है गलियारों में
कल रोशनी की चकाचौंध में
तू फिर भटक जाएगा
ढूँढ ले खुद को, यही मौक़ा है
अब जो खोया, तो फिर ना कभी ढूँढ पाएगा
खोल आँखें, अब उठ भी जा
कल मीठे सपनो में
तू फिर खो जाएगा
जिस कल की कल्पना में
जी रहा है आज
जो आज खो दिया तो
कल ना फिर वो कल आएगा…
May 4, 2020