ऐ चाँद, बड़ी ग़ुस्ताख़ है तेरी ये चाँदनी…
ऐ चाँद, बड़ी ग़ुस्ताख़ है तेरी ये चाँदनी
जब भी वो जाते हैं
खिड़की के काँच से छनकर
मेरे बिस्तर पर आ जाती है
तन्हाइयाँ मेरी करवट जो लें ज़रा
उनके ख़यालों का तकिया
बीच में अड़ा देती है
ना ख़ुद सोती है
ना मुझे सोने देती है
ऐ चाँद, बड़ी ग़ुस्ताख़ है तेरी ये चाँदनी...
शैल
July 30, 2017