सिलसिला ये चाहत का…
शफ़क का ओढ़े पैराहन
हौले से उनका ख्याल ज़हन में उतरा
निगाहों में मेरी
रंगों का सिलसिला मचल सा गया
बहार-ए-सुब्ह-ए-चमन से महक उठी फ़िज़ा
उस मीठी खुशबु का भीना-भीना एहसास
दिल के तारों पर
राग मल्हार छेड़ गया
उनके हिज्र से आगे
बढ़ी न उम्र मेरी
रात सो गई
ख़त्म रतजगे सफ़र न हुआ...
शफ़क: सुबह या शाम को आसमान की लाली
पैराहन: वस्त्र
हिज्र: जुदाई, बिछोह
शैल
September 6, 2017