ज़िन्दगी

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दास्ताँ-ए-दर्द है ज़िन्दगी
याँ कोई पहलू शादमानी
कैसे रोके भला इन अश्कों को
चश्म-ए-अंजुम में भरा है फक़त पानी

कुछ ख़्वाब सजाए हमने भी
तिनका-तिनका जोड़ के
चली वक़्त की आँधी ऐसी
हर तिलिस्म रख दिया तोड़ के

बंजर थी ज़मीन मेरी
मुझे खबर न थी
बे-सबब देती रही इल्ज़ाम
मौसम-ए-बरसात को

शोर के साये में
सन्नाटों को पनाह मिली
असमंजस में हूँ मैं
क्यों न शहर में हुई खलबली

यादों पर मेरी 'शैल'
अब धुंद मेहरबान है
कि ख़्वाबों के सफर का
शायद यहीं इख़्तिताम है...

शादमानी: Joyous
तिलिस्म: Magical spell
इख़्तिताम: End

शैल
June 19, 2018

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