हम कब बड़े हो गए...`
मुद्दत हो गयी
मखमली घास पर बिछी
ओस की बूँदों पर आँखें मीचे
पल भर मेँ
सपनो के पंख लगाकर
बादलों संग उड़े
ज़िन्दगी फिसलती रही
बन्द मुट्ठी से
रेत की तरह
पता ही न चला
हम कब बड़े हो गए...`
शैल
August 7, 2017
मुद्दत हो गयी
मखमली घास पर बिछी
ओस की बूँदों पर आँखें मीचे
पल भर मेँ
सपनो के पंख लगाकर
बादलों संग उड़े
ज़िन्दगी फिसलती रही
बन्द मुट्ठी से
रेत की तरह
पता ही न चला
हम कब बड़े हो गए...`
शैल
August 7, 2017