नहीं थम रही दरिंदगी

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कल शब दहलीज़ पर मेरी चाँद के कुछ टुकड़े मिले
स्याह चूनर पर टंगे सितारे भी आँगन में आ गिरे
इक धधकता शोला बरसा फ़लक से
जैसे मंदिर-ओ-काबा में साज़िश की हो किसी ने
ये शोर कैसा उठ रहा शहर के मकानों से
सुर्ख़ रक्स कर रही हैवानियत शैतानो सी
कोई तो ढूँढ के इंसा को ले आए कहीं से
कि 'शैल' तरस गई हैं निगाहें
कभी, कहीं तो मिल, ऐ इंसानियत
तू जो भूल गयी रुख दैर-ओ-हरम का
इक ज़माने से…

शैल
June 18, 2018

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