नाव बचपन की

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ख़्वाबों के दरिया पर
नाव उतारी बचपन की
यूँ डुबक-डुबक और छपक-छपक
चल दी वो इठलाती सी

चाँदी की लहरों पर
बूँदों का बिछौना था
आसमानी गहराई का
धूप ने पकड़ा कोना था

यादों के दरख्त से टकराते
मस्ताने झोकों में
मतवाले सूखे लम्हे
झूल रहे थे

बचपन की तुतलाती बोली में
मीठा-मीठा, कुछ बोल रहे थे
नन्हें नन्हें हाथों से
शायद खोया बचपन टटोल रहे थे
शायद खोया बचपन टटोल रहे थे...

शैल
July 17, 2017

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