कूज़ा-गर
क्या ढूँढ़ती हैं निगाहें
पर्दा-ए-अफ़्लाक में
जब तूफ़ां है तैर रहा
दीदा-ए-नमनाक में
रिश्तों के दरमियाँ
गूँजती है चुप्पी
और
मिट्टी से बतियाता है इंसां
कुछ तो करिश्मा है, कूज़ा-गर
तेरे हाथ में...
पर्दा-ए-अफ़्लाक: आसमानों का नक़ाब
दीदा-ए-नमनाक: आँसू भरी आँखें
कूज़ा-गर: कुम्हार
शैल
October 6, 2017