पुराना इक संदूक…

पुराना इक संदूक.jpg

दिवाली की सफ़ाई करते हुए
टांड पर रखे टिन के पुराने संदूक से
आज अरसे पुरानी कुछ गर्मी की छुटियाँ गिर पड़ीं …
इक इलास्टिक, जो वक़्त ने खींच ढीला कर दिया था
स्टापू में हमेशा जिताने वाली कैम्पा-कोला की ढिबरी
बड़े संजो कर रखे शंख कईं
जिनसे आज भी रेत झर रही थी
दादी की सिलाइयों में
आधा बुना मफलर
जो गली की चहेती जूली के काले, चितकबरे
नन्हें-मुन्हें पिल्लों के लिए चाहा था बुनना
पीली पड़ गयी रफ कॉपी के पन्नों से झाँकते
ज़ीरो-काँटा, खिल्ली उड़ाती फ्लेम्स की कटी लकीरें
टीचर की नज़रों से बचाकर पास किए मैसेज सभी
आखिरी बेंच से धुंदले-धुंदले कानो में पड़ रहे हंसी के ठहाके
पापा जो लाये थे नीली आँखों वाली गुड़िया
अपनी टूटी टांग के दर्द से बेख़बर, सो रही थी मज़े से
मैले-कुचले रुमाल में बंधे मेरे गीले आँसू
सूख गए थे गुड़िया से लिपटे लिपटे
सिक्के कुछ, माला के बिखरे मोती
चंद खाली रेपर चॉकलेट के
झुर्रियाँ सहलाते पुराने खतों से बिखरती
पहले प्यार की मीठी ख़ुश्बू
इक अरसा हो चला था, धूप की ऊँगली पकड़
बादलों संग आँख-मिचौली खेले
दिवाली की सफ़ाई करते हुए
टांड पर रखे टिन के पुराने संदूक से
आज मिले मुझे
इंद्र-धनुष के कुछ टुकड़े...

शैल
October 15, 2017

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