गुज़रे पल…

जाने किसका इंतज़ार है निगाहों को
जाने किसके लिए सजाती हूँ दर-ओ-दरवाज़े
याद भी तो जुगनू सी हो गयी है
टिम-टिम करती है रात के अंधेरों में
ताउम्र जगाया जिन ख्वाबों ने
अब अक्सर थपकियाँ दे सुलाती हूँ उन्हें
इल्म है, लौट कर आते नहीं गुज़रे पल
फ़िर क्यों दिल बार बार पुकारता है उन्हें...

शैल
September 11, 2017

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