सराब
सेहराओं की तपती रेत पर
रख दिए सराब, बेहिसाब
ऐसी भी क्या संदिली
रखी न वहाँ इक भी चेनाब
ज़र्रा-ज़र्रा ज़मीन का
काँटों से भर दिया
प्यासी निगाहें तरसती रहीं
दीदार कभी मगर अक्स-ए-गुलाब न हुआ
ऊब गयी ज़िन्दगी यूँ दर्द-ओ-तअब से
उदास अबसार थक गए
खुशरंग चन्द ख़्वाबों के लिए
मैं भटकता रहा
ग़मगीन तिरगियों में यूँ ही
और ढूँढ़ता रहा हर शजर तले
रखा हो कोई महताब, शायद कहीं...
सेहराओं: रेगिस्तान
सराब: मृगतृष्णा
चेनाब: इक दरिया का नाम
अक्स-ए-गुलाब: गुलाब का प्रतिबिम्ब
दर्द-ओ-तअब: दर्द और तकलीफ़
तीरगी: अँधेरों
शजर: पेड़
महताब: चन्द्रमा
शैल
September 13, 2017