गीला मन…

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इस बरस
यूँ बरस रहा है सावन
जैसे बरसों से न बरसा हो
ख़ुश्क रूख़सारों पर
बिना रुके बह रहे हैं आँसू
पलकों पर अज़ीब सी सीलन है
गीला मन अब सूखता नहीं
ज़िन्दगी कुछ ज़्यादा ही भीग गयी है...

शैल
July 25, 2017

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