अल्लाह-हू…

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दिन बंजारे कब लौटे हैं
कब हुए किसी के बैरागी पल
फकीरों की तो फितरत ही है
आज इधर, कल किधर
लौ लगा तो रूमी सी
नज़र उठाये तो तबरीज़ा
नज़र झुकाये तो तबरीज़ा
फिर क्या मैं
और क्या तू
हर कतरे से महके
अल्लाह-हू...

शैल
July 23, 2017

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