गए तुम गए कहाँ…
इस ज़माने में कहाँ आता है ठहरने को कोई
पर जैसे आप गए हो, ऐसे भी तो कोई जाता नहीं
इक बार तो कज़ा (मौत) ने भी फेर ली होंगी आँखें
लबों पर जब आपके शोख़ हँसी देखी होगी
फिर किस्मत के लेखे आगे
उसकी भी कहाँ पेश चली होगी
ढूंढें अब कहाँ आपको, कहाँ है ठौर ठिकाना
कहीं तो छोड़ जाते, अपने क़दमों के निशाँ
यूँ तो जो आया इस जहाँ में, दिन मुक़र्रर है उसका
पर चले गए हो सितारों से आगे जहाँ,
क्या है कोई ज़रिया, संदेसा भेजने का वहाँ…?
शैल
September 4, 2017