इस मन का मैं क्या करूँ?

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जून सी झुलसती यादों को
साँझ के ठण्डे छिड़काव सा भिगोने को मन करता है
दरारों में फँसी उन यादों की सौंधी खुशबु को
प्याली में घोल, शरबत सा पीने को मन करता है
हथेली पर टपकते मैंगो-डुइट के मीठे एहसास में
कतरा-कतरा पिघल जाने को मन करता है
काली-खट्टी यादों के गोलों की ठण्डी-ठण्डी चुस्कियों में
खो जाने को मन करता है
कच्ची कैरी सी यादों के चटखारों को
कलम में भर लेने को मन करता है
चीनी के मर्तबान में उन्हीं यादों को सहेज कर
धूप की मिठास दिखाने को मन करता है
कूलर की चिक से टकराते यादों के शोर को
कानो में पहनने को मन करता है
लू सी गर्म कुछ यादों के थपेड़ों से
आँख बचाने को मन करता है
अमलतास और गुलमोहर की डालों से लटके
यादों के झूमर पर झूल जाने को मन करता है
नरम तारों की छाँव में, सपनों की चाँदनी ओढ़
इस पल से उस पल फिसल जाने को मन करता है
पहाड़ों की ढलान पर अंगड़ाई लेती धूप-छाँव से
हँसी-ठिठोली करने को मन करता है
वादी में अपने नाम को चट्टानों बीच उछालकर
उसे वापस लपकने को मन करता है
अल्हड़, मासूम कुछ यादों पर
अपने गीले मोती बिखेरने को मन करता है
गर्मी की वो मदमस्त छुटियाँ
फिर से जीने को मन करता है
ऐ बचपन, क्यों तुझसे
बार-बार मिलने को मन करता है…

शैल
June 13, 2021

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