लम्हें
वक़्त की शाख़ पर
कभी पतझड़ तो कभी बहार आती है
होंठ हँसते हैं मगर
बेफ़वा आँखें छलछला जाती हैं
गुनगुनाते वो लम्हें
जो दफ़न हो गयें हैं
रोज़ के शोर में
बसंती हवा
जाने कहाँ से
उनकी ख़ुशबू चुरा लाती है...
शैल
July 16, 2017
वक़्त की शाख़ पर
कभी पतझड़ तो कभी बहार आती है
होंठ हँसते हैं मगर
बेफ़वा आँखें छलछला जाती हैं
गुनगुनाते वो लम्हें
जो दफ़न हो गयें हैं
रोज़ के शोर में
बसंती हवा
जाने कहाँ से
उनकी ख़ुशबू चुरा लाती है...
शैल
July 16, 2017