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सोंधी मिट्टी की खुशबु में लिपटी हुई कुछ यादें
फूलों की पंखुरियों में सहेजे हुए कुछ लम्हात
उस अकस्मात् मुलाकात की गूंजती हुई धढ़कन
इक ग़ज़ल में घुली हुई, किसी के लफ़्ज़ों की मिश्री
ज़हन में,बे-खौफ फैलता हुआ इक तस्सवुर का जादू
वक़्त की आँखों से गिरी हुई इक अश्क की बूँद
शबनम से चुराई हुई, थोड़ी सी नमी
इक अजनबी से मिली, बे-तकल्लुफ हंसी
उनकी झलक का मुस्कुराता हुआ खुमार
इक चश्म में तैरती हुई झील की गहराई
ज़हन के आँगन में खेलते हुए ख्यालों के कहकहे
बारिश की ये बूँदें
धुंदली सी यादों को
क्यूँ हरा कर जाती हैं…

शैल
September 11, 2010

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