मीठी वो नींद

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अब नींद भी पूछती है आने से पहले
रंगीन ख़्वाबों का असबाब हो
तो रुख करूँ
खुले आँगन में
बिछी हो जर्द चाँदनी
और आसमां पे रक्से-अब्रो-महताब हो
तो रुख करूँ
तेज़ हवा संग उड़ रहे औराक़ हों
मुँह पर औंधी पड़ी दिलचस्प किस्सों की किताब हो
तो रुख करूँ
शबनमी एहसास हो
शब भी शादाब हो
तो रुख करूँ...


असबाब: सामान
रक्से-अब्रो-महताब: बादल और चन्द्रमा का नृत्य
औराक़: पुस्तक के पन्ने
शब: रात
शादाब: प्रफुल्लित

शैल
September 18, 2017

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