फ़िज़ा सतरंगी…

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हल्की-हल्की बारिश का सरूर है
याँ पिघलते आफ़ताब का नूर
मौसिकी बाँध रहा है समां
आज फ़िर फिज़ा मेँ
सतरंगी साज़ खिलेंगे
नूरानी उस महफ़िल मेँ
फ़िर तेरे ख्यालों के नग्में
मदमस्त झूमेंगे...

शैल
August 18, 2017

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