रुक गया है समां

किसी शायर ने खूब कहा है-
"वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना ना हो मुमकिन उसे इक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा..."


काग़ज़ कलम दवात तक रुक जाता है
ज़ुबां तलक आते-आते कम्बख़्त दर्द मेरा रुक जाता है

भड़कता आफ़ताब वो दिन भर आग उगलता है
महताब-ए-ज़ोम मेरा अंधेरों में रुक जाता है

हर्फ़ का दीप हवा से उलझे कैसे
यही सोच हर नुक़्ता मेरा हलक में रुक जाता है

हिज्र का मौसम, उजड़े एहसास, यादों की शबनम
भीगे अब्सारों में हर अश्क़ मेरा रुक जाता है...

आफ़ताब: सूरज
महताब: चाँद
ज़ोम: घमंड
हर्फ़: शब्द
नुक़्ता: तथ्य
हलक: कंठ
हिज्र: विरह
अब्सार: आँख

शैल
December 21, 2020

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