उधड़ते-बुनते रिश्ते

@kellysikkema, Unsplash

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कल हम भी पहुँच गए
ज़िन्दगी के बाज़ार में
सोचा, थोड़ी ख़रीद-बेक सीख लें
रिश्तों के व्यापार में

अजब ही नज़ारा था
मोल-भाव का कोई तोल न था
कौन था अपना, कौन पराया
इसमें भी बहुत झोल था

उम्मीदें यहाँ झूटी थीं
यादें भी तो रूठी थीं
ये कैसी उधेड़-बुन थी
दिलों से रिस रही सिलन थी

और दिमाग़ की सिलाइयाँ
रिश्ते बुन रही थीं...

शैल
July 20, 2017

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